Abhi saab

Add To collaction

सुबह की शुरुआत

“रत्ना! राजकुमारी रत्ना! तुम वहाँ कहाँ शिव मंदिर के पास ही पूजा कर के खड़ी हो गई? आगे आओ। यहाँ महल के अंदर आओ। वहाँ क्यों खड़ी हो? रत्ना मैं तुम्हारा इंतजार यहाँ, इस तरफ कर रहा हूँ! रत्ना! खड़ी न रहो, चली आओ अंदर! मैं सदियों से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ और अब जब तुम आई हो तो बस वहीं हमेशा की तरह शिव जी की आराधना कर उसी खंडहर जैसे मंदिर के दरवाजे पर रुक जाती हो। आओ रत्ना! देखो किसी अपने को यूँ इतना इंतजार कराना चोख्यो को नई! कबसे तुम्हारे इंतजार में मैं महल की इन अंधेरी चहारदीवारियों में तुम्हारे आने की बाट जोह रहा हूँ। आओ रत्ना आओ... और अपने प्रेम के चिरागों से इन महलों की अंधेरी गलियों में रोशनी बिखेर दो।“

“आगे बढ़ो रत्ना देखो महल के अंदर तुम्हारा सिंध, तुम्हारा चाहने वाला, तुम्हारा दीवाना इस वीराने महल में तुम्हारे कदमों की आहट लिए बैठा है। आओ अंदर आओ...मेरी प्यारी राजकुमारी रत्ना... रत्ना... रत्ना...”

“हाँ...” कहते हुए श्वेता अपनी आँखें खोलती है और एक झटके में बिस्तर से उठ कर बैठ जाती है। पसीने से भीगा शरीर, तेज चलती हुई सांसें, आँखों में कई सवाल और होठों पर श्री हनुमान चालीसा का जाप। श्वेता सोलह वर्ष की एक लड़की जिसने यौवन की दहलीज पर कदम ही रखा है। दुग्ध-सा श्वेत बदन जिसे देख ही उसके माता-पिता ने उसका नाम श्वेता रखा है। इतनी सुंदर और सुकुमार काया जो हाथ लगाने भर से मैंली जान पड़े। हिरनी जैसी बड़ी-बड़ी आँखें जिनमें चंचलता भरी हुई है और उन आँखों का रंग नीला। जैसे नीला समन्दर और समन्दर में उतरने पर खुद को ही भूल बिसर जाए। होंठ थोड़े से पतले लेकिन सुर्ख गुलाबी। और उन होठों के ऊपर एक काला तिल जो उन होठों को और भी आकर्षक बनाता है। पतली लेकिन लंबी गर्दन और सांचे में ढला शरीर। जो भी एक नजर श्वेता को देख ले कुछ पलों के लिए खुद को ही भूल-बिसर जाये।

श्वेता की आवाज़ सुन पास ही बिस्तर में सो रही श्वेता की माँ जाग जाती है और श्वेता के पास बैठते हुए उसके कंधे पर हाथ रख कहती है, “श्वेता बेटा... श्वेता... आप ठीक तो हैं? आपकी सांसे इतनी उखड़ क्यों रही हैं? श्वेता बेटा क्या बात है! कहीं वो पन्द्रह दिनों के बाद आने वाला सपना फिर से तो नहीं आया?” माँ की आवाज़ सुन श्वेता अपनी माँ रंजना के गले से लग जाती है। रंजना, श्वेता के पीठ पर हाथ रखते हुए उसे सांत्वना देती है। “हम समझ गये बिटिया आपको फिर से वही सपना आया है न?“

“हाँ माँ-सा! वही सपना! एक पुराना लेकिन बड़ा-सा किला और उस किले के अंदर थोड़ा आगे कुछ एक खंडहर और उन्हीं खंडहरों में एक पुराना शिव मंदिर। और उस किले में भी ढेर सारे सुंदर और बड़े-बड़े महल। उस किले में सैकड़ों की संख्या में लोग। जो बड़ी ही शालीनता से वहाँ निवास करते हैं और माँ-सा हम खुद को एक शिव मंदिर में भगवान शिव की आराधना करते हुए देखते हैं। वही जानी-पहचानी सी आवाज़ जो हम हर पन्द्रह दिन में स्वप्न में सुनते हैं। जो हमें राजकुमारी रत्ना कह महल के अंदर बुलाती है.. और हम कश्मकश में पड़ वहीं शिव मन्दिर के बाहर ही खडे रहते हैं और स्वप्न टूट जाता है...”

“ये सब हमारे साथ क्या हो रहा है माँ-सा? ऐसे अजीब से सपने हमें क्यों आते हैं?” श्वेता अपनी माँ-सा के गले लगे हुए ही सारी बाते बताती है जिसे सुन रंजना कहती है “बेटा! वो सपना ही तो है कोई हकीकत तो है नहीं। और फिर गुरुदेव ने आपको ये अमोघ मंत्र दिया है न जाप करने के लिए, जिसके प्रभाव से कुछ ही देर बाद आप इस स्वप्न को भूल जायेंगी। बस ईश्वर पर आस्था और गुरुदेव पर विश्वास रखो, बहुत जल्द ये सब सपने आना बंद हो जायेंगे। श्वेता! आप तो हमारी बहादुर बच्ची है फिर भला ऐसे सपनों से कैसे घबरा रही हो। सपने तो सपने ही होते है न! भला इनका वास्तविकता से क्या सरोकार?”

रंजना, श्वेता को श्री हनुमान चालीसा जाप पूर्ण करने को कहती है जिसे श्वेता तन्मयता से पूर्ण करने लगती है। श्वेता को मशगूल देख रंजना वहाँ से बाहर चली आती है। ब्रह्म-मुहूर्त प्रारंभ हो चुका होता है। गृह कार्य करते हुए रंजना खुद से बड़बड़ाती जा रही है.. “पता नहीं कब ये सपना हमारी बच्ची का पीछा छोड़ेगा? दस बरस से यही सपना उसे हर पन्द्रह दिन में आ ही जाता है। जब से हम उस मनहूस किले वाले रास्ते से होकर आये हैं, उसी दिन से श्वेता को ये सपना आना शुरू हो गया है। वो भी ब्रह्म-मुहूर्त के ही समय। गुरुदेव को बताया तब उन्होंने अपनी सिद्धियों द्वारा पता लगा कर श्वेता को हर स्वप्न के बाद इसका जाप अवश्य करने को कहा है जिससे उस स्वप्न का प्रभाव थोड़ा कम हो सके। अब तो इसका सोलहवां वर्ष भी प्रारम्भ हो गया है और गुरुदेव की भविष्य वाणी के अनुसार ये वर्ष इसके लिए अत्यंत कष्टकारी होगा। न जाने अब क्या होगा कैसे सब सही होगा...?“ रंजना इसी तरह बड़बड़ाते हुए चिंता में खो जाती है।

श्वेता भी उठ कर स्नान ध्यान कर पूजा अर्चना करती है और रंजना के पास आकर रहे सहे कामो में उसकी मदद करने लगती है। श्वेता को देख रंजना मुस्कुरा देती है और खुद अपने बचे हुए दैनिक कार्य करने अपने कमरे में चली जाती है। श्वेता स्वप्न को भूल मुस्कुराते हुए गुनगुनाते लगती है। कुछ ही देर में भोर हो जाती है और श्वेता के पिता निरंजन चौहान और उसका छोटा भाई विक्रांत चौहान जग कर सारे जरूरी काम निपटा डायनिंग टेबल पर आ जाते है। रंजना और श्वेता दोनों अपने अपने हाथों में खाने का बाउल लिए आती है और डायनिंग पर बैठ जाती हैं, रंजना सभी को सर्व कर देती है।

“श्वेता बेटा! तुमने कॉलेज सेलेक्ट तो कर लिया न?” “अपने जिले में वैसे ही एक से एक कॉलेज हैं। आप उनमें से कोई भी एक चुन कर बता देना मैं आपका दाखिला उसी कॉलेज में करा दूंगा।“ निरंजन, श्वेता से कहते हैं। “जी बापू-सा! कॉलेज भी हमने देख लिया है और ऑनलाइन फॉर्म भी फिल कर दिया है। बस अब कल पेमेंट करना है सो आप हमारा रजिस्ट्रेशन नम्बर लीजिएगा और उसके जरिए ऑनलाइन फीस भर दीजियेगा।“ “बिल्कुल! आप एक कार्य कीजिएगा अपना रजिस्ट्रेशन नंबर और पासवर्ड दोनों दे दीजिएगा, हम आफिस जाकर अपने लैपटॉप से ओपन कर फीस जमा कर फाइनल सबमिट कर देंगे।“ “जी बिल्कुल बापू-सा! हम अभी नाश्ता ख़तम कर कुछ ही देर में लाते है।“ “ठीक है।“

कुछ देर बाद श्वेता उठ कर अपने कमरे में जाती है और वहाँ से एक पेपर पर रजिस्ट्रेशन नम्बर पासवर्ड कॉलेज नेम, साइट लिख कर ले आती है। और लाकर निरंजन को दे देती है।

निरंजन पेपर अपने पॉकेट में रख वहाँ से उठकर वापस कमरे में चला जाता है। श्वेता भी अपने कमरे में जाकर स्टडी करने लगती है लेकिन उसका मन नहीं लगता। तो वो मोबाइल उठाकर नेट पर नई-नई लेकिन कुछ अलग सी चीज़े देखने लगती है। जिनमें उसकी नज़र पड़ती है एक किले पर जिसे देख वो एक खिंचाव महसूस करने लगती है मानो उस किले से उसका कोई पुराना नाता हो।

किले की तस्वीरों को देखते हुए श्वेता सोचने लगती है ये किला कितना विशाल है। इसकी बनावट को देख लग रहा है कि अपने समय में ये बेहद भव्य और खूबसूरत रहा होगा। इसकी गलियारे, महल आदि में की गई नक्काशी कितनी बारीक है न। राजवंश की शानो शौकत इसमें स्पष्ट झलकती है।

“श्वेता यहाँ आना जरा! टेलीविजन पर आपके स्टडी से रिलेटेड चीज़े आ रही है जरा देखो तो।“ रंजना हॉल में टीवी के सामने बैठे-बैठे ही श्वेता को आवाज़ देते हुए कहती है। “आई माँ-सा!” कहते हुए श्वेता अपना फोन बंद कर साइड में रखती है और सीढ़ियों से उतरते हुए हॉल में चली आती है। जहाँ रंजना एक टीवी चैनल पर पुरातत्व विभाग से संबंधित जानकारियां देख रही है।

“जी माँ-सा! ऐसा क्या आ रहा है टीवी पर जो आपने हमें आवाज़ लगा कर बुलाया?” श्वेता ने आते ही पूछा। “श्वेता! बेटा ये देखो पुरातत्व विभाग से रिलेटेड एक शो टीवी पर दिखा रहे है। और आपको भी तो इन सब के बारे में जानकारी चाहिए ही होगी, क्योंकि आपने इसी विषय से आगे पढ़ने का फैसला जो किया है।“

“हाँ माँ-सा। हम भी अवश्य देखेंगे। कुछ न कुछ नया तो अवश्य जानने को मिलेगा। माँ-सा टीवी की आवाज़ को थोड़ा बढ़ा दो।“ श्वेता सोफे वाली कुर्सी पर बैठ तकिए को अपने पैरों पर रखते हुए कहती है।

“श्वेता आपके बापू-सा ने आपका फॉर्म भर दिया है। आप कल से कॉलेज जा सकती हैं। ठीक है?”

श्वेता खुश होते हुए कहती है “ये तो बहुत अच्छी खबर है माँ-सा! कल से हम भी कॉलेज जाएंगे।“

“माँ-सा! कॉलेज जाने के लिए तो हमें कुछ सामान की भी आवश्यकता होगी। तो हम सोच रहे थे कि आप थोड़ा समय निकाल लें और हमारे साथ मार्केट चल कर हमारी सारी शॉपिंग करा लाए। अब आपको तो पता है ये तोल-मोल करना हमारे वश का तो है नहीं। इसमें तो आप ही एक्सपर्ट हो।“ श्वेता हँसते हुए बोली।

“नहीं आता तो सीख लो बेटा। ये सब बातें आवश्यक होती है जीवन में सीखना। अभी तो हम आपके साथ है तो हमें बुला ले जाती हो कल को हम साथ नहीं हुए फिर? क्या करोगी?” “ओह... हो माँ-सा! आप और आपकी बातें। आप हमेशा हमारे साथ रहेंगी। ऐसा हमें पता है।“ श्वेता अपनी माँ-सा के गले से लगे हुए प्रेम जताने लगती है। रंजना, श्वेता के सिर पर हाथ रख मुस्कुराते हुए कहती है “बस-बस। अब ज्यादा मस्का न लगाओ। ठीक है। अभी कुछ देर बाद चलते है बाज़ार के लिए। आप समय पर तैयार हो जाना। आपके कपड़े निकाल कर रख हम बेड पर रख आएंगे। ठीक है?”

“जी माँ-सा! अभी हम ये शो देख लेते हैं।“ कहते हुए श्वेता सीधे हो सोफे पर बैठ जाती है और रंजना वहाँ से उठ कर बाकी के कार्य को करने लगती है। कुछ ही देर में डॉक्यूमेंट्री ख़तम हो जाती है और श्वेता अपने कमरे में तैयार होने चली जाती है। वो हाथ पैर धो फ्रेश होने जाती है कि तभी उसे अपने मोबाइल पर किसी डॉक्यूमेंट्री के शुरू होने की आवाज़ आने लगती है। श्वेता मन ही मन थोड़ा घबरा जाती है और गुरुजी की बात याद कर उनका दिया मंत्र जाप करने लगती है। धीरे-धीरे अपने डर पर काबू कर श्वेता बाहर निकलती है और सधे कदमों से बेड की ओर बढ़ती है। जहाँ वो देखती है कि उसके मोबाइल पर राजस्थान के राजगढ़ किले पर बनी हुई डॉक्यूमेंट्री चल रही होती है। ये देख श्वेता हैरान रह जाती है कि डॉक्यूमेंट्री अपने आप कैसे चल सकती है। जबकि वो नीचे जाने से पहले अपना मोबाइल ऑफ कर के गई थी। और अभी उसने नीचे से आने पर मोबाइल को हाथ तक नहीं लगाया फिर ये सब क्या हो रहा है। श्वेता कुछ समझ नहीं पाती है और अपना फोन उठा कर बंद कर देती है। बाजार जाने के लिये कुछ गुनगुनाते हुए तैयार हो जाती है। कानो में छोटी-छोटी गोल्डन बालियां, लंबे घने बालों को गूंथ कर आगे रखी हुई चोटी उसकी सुंदरता को बढ़ा रहे होते हैं। गले में ब्लैक रंग का धागा पड़ा होता है जिसमें उसके गुरुदेव का दिया हुआ एक मुखी रुद्राक्ष पड़ा होता है। राजस्थानी लिबास पहन श्वेता पूरी तरीके से तैयार हो जाती है और अपना स्लिंग बैग उठा नीचे उतर आती है। जहाँ हॉल में खड़ी रंजना घड़ी देखते हुए उसका इंतजार कर रही है।

श्वेता को तैयार देख रंजना मुस्कुराती है और उसके साथ मार्केट के लिए निकल जाती है। रंजना, श्वेता दोनों मार्केट से सभी आवश्यक चीज़े खरीद लेती है। लौटते हुए में दोनों को शाम हो जाती है। श्वेता और रंजना दोनों घर के लिए निकल आती है। दोनों ऑटो में बैठी हुई होती है। रंजना के चेहरे पर चिंता के भाव स्पष्ट उभरने लगते है। जिसका कारण है समय की गति का ट्रेन की गति की तरह दौड़ना। रंजना बार-बार घबराते हुए घड़ी की तरफ देखती जा रही है।“ड्राईवर थोड़ा और तेज ऑटो चलाओ! सात बजने ही वाले है हम सात बजे से पहले पहले अपने घर पहुँचना है।“

रंजना की बात सुन श्वेता हैरान हो उससे प्रश्न करती है “माँ-सा! हम जब भी आपके साथ या बापू-सा के साथ घर से बाहर निकलते है तो आप हमेशा सात बजे से पहले ही घर पहुँचने की हड़बड़ी में लगे रहते हैं। क्यों माँ-सा? ऐसा क्या कारण है माँ-सा?” “यहाँ तक कि हम जब भी घर के बाहर किसी शादी पार्टी में जाने की जिद करते है तब भी आप नहीं जाने देते। ये कह कर मना कर देते हो की शादी की पार्टियां तो रात में सजती है और हमें सात बजे के बाद घर से बाहर ही नहीं निकलना है।“

श्वेता की बात सुन रंजना सोच में पड़ जाती है, ‘क्या कहें अब हम इससे। अभी इसकी उम्र नहीं है इन सब के बारे में जानने समझने की। इन सबका कारण जान कर डर कहीं इसके हृदय में न बैठ जाए। लेकिन कुछ न कुछ तो कहना ही होगा तभी उसकी जिज्ञासा शांत होगी। अन्यथा ये इतनी जिद्दी है जब तक इनके प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल जाते तब तक चैन से नहीं बैठेंगी।‘

श्वेता सायं सात बजे से पहले हम घर जाने की जल्दी इसीलिए करते है क्योंकि इस समय गोधूलि बेला होती है। और हमारे ऋषि मुनियों के अनुसार गोधूलि बेला के समय घर के सभी सदस्यों को घर पर रहकर ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। बस इसीलिए हम हमेशा सात बजे से पहले घर जाने की कोशिश करते है। कहते हुए रंजना, श्वेता को देख मुस्कुराने लगती है। श्वेता, रंजना की आँखों में देखती है और समझ जाती है कि उसकी माँ-सा उससे झूठ बोल रही है।

लेकिन क्यों इस बात का कारण समझ नहीं पाती है लेकिन रंजना की हाँ में हाँ मिला देती है। कुछ ही सेकंड में ऑटो चौहान हाउस के सामने रुकता है। श्वेता एवम् रंजना दोनों ऑटो में निकल घर के अंदर चली जाती है। “माँ-सा हम सामान लेकर अपने कमरे में जा रहे है। अगर कोई कार्य हो तो आवाज़ लगा देना हम आ जाएंगे।

   22
1 Comments

Gunjan Kamal

28-Sep-2023 08:11 AM

👏👌🙏🏻

Reply